सोमवार, 27 मई 2024

*_"दादी तुम क्यों छोड़ गई"_*

 *_"दादी तुम क्यों छोड़ गई"_*


           *_कविता_*




दादी क्यों मुझको छोड़ गई,

तुम बिन कैसे रह पाऊंगी।

स्नेह भरा आलिंगन तेरा,

कैसे, कहो भुलाऊंगी।।

जब भी रोई, मां ने डांटा,

चुपके से मुझे मनाया है।

बांहों का झूला, गोद तेरी,

संग सदा तुम्हारा साया है।।

मां से छुपकर, पैसे दे कर,

टॉफी, कुल्फी दिलवाती तुम।

नित नई कहानी परियों की,

फिर मुझको रोज सुनाती तुम।

झुर्री वाला, वो ओज भरा,

चेहरा मैं नहीं भुला सकती।

हाथों से मुझे खिलाती तुम,

पर ना मैं तुम्हें खिला सकती।।

मुझको तो तुम बिन घर अपना,

बीराना जैसा लगता है।

इस घर का हर इक कोना, 

बिन तेरे बहुत सिसकता है।।

दादी तुम जल्दी आ जाओ,

तेरे आंचल में छिप जाऊं मैं।

उंगली को तेरी पकड़ चलूं,

पल भर भी ना घबराऊं मैं।।

आ जाओ दादी पास मेरे ,

या मुझे बुला लो अपने पास।

बिन तेरे कठिन बहुत जीवन,

पोती तुम बिन रहती उदास।।


*_कवि हरीश शर्मा_*

*_लक्ष्मणगढ़ - (सीकर)_*

*_राजस्थान_*

*_बात हिमाचल की_*





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