HPURC राजनीतिक शास्त्र विभाग के विद्यार्थी अभिलाष शर्मा का कहना है कि कल का दिन समस्त जनजातीय लोगों के लिए गौरव का दिन
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HPURC राजनीतिक शास्त्र विभाग के विद्यार्थी अभिलाष शर्मा का कहना है कि कल का दिन समस्त जनजातीय लोगों के लिए गौरव का दिन है इस दिन झारखंड के सपूत बिरसा मुंडा का जन्म भी 15 नवंबर को ही हुआ था। बिरसा मुंडा जी ने अंग्रेजों और जमींदारों के खिलाफ एक सशक्त आदिवासी आंदोलन चलाया और अपने समाज में मौजूद कुछ कुरीतियों को भी हटाने का काम किया। उनका जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के खूंटी जिले के उलीहातू गांव में हुआ था। वह मुंडा जनजाति से संबंधित थे। मुंडा जनजाति ज्यादातर छोटा नागपुर के पाठारों में निवास करती है।
बिरसा जी ने शुरुआती पढ़ाई के दौरान ही यह समझ लिया था कि अंग्रेज यहां रहने वालों का शोषण करते हैं। स्थानीय जमींदार भी इसमें पीछे नहीं रहते। ये आदिवासियों से बेगार करवाते हैं और अंग्रेज जबरन कर वसूलते हैं। इसलिए वह अपने समाज के लोगों में जागरूकता पैदा करने की कोशिश में लग गए। कहते हैं कि साल 1894 में छोटा नागपुर इलाके में मानसून की बारिश नहीं हुई। इसकी वजह से भारी अकाल पड़ा और महामारी फैली, तब बिरसा ने सामने आकर अपने समाज के लोगों की बहुत सेवा की उन्होंने आदिवासियों के पिछड़ेपन का सबसे बड़ा कारण अंधविश्वास और अशिक्षा को माना। इसलिए बिरसा ने मुंडाओं के बीच फैली झाड़-फूंक आदि को बेकार बताना शुरू किया। उन्होंने सफाई से रहने पर जोर दिया। यह भी बताया कि सफाई न रखने पर क्या नुकसान होता है। उन्होंने शिक्षा के महत्व को भी समझाया। यह भी बताया कि अशिक्षित इंसान ही अक्सर शोषण का शिकार होता है। इसके अलावा उन्होंने अपने समाज के लोगों में राजनीतिक चेतना जगाने का काम भी किया और बताया कि इकट्ठे होकर काम करने से सफलता मिल जाती है बिरसा मुंडा में लोगों को जोड़ने की अनूठी कला थी। उन्होंने लोगों को एकत्रित किया और 1 अक्टूबर 1894 को विद्रोह कर दिया। इन्होंने लगान माफी के लिए भी आंदोलन किया। लोगों ने बेगार करना बंद कर दिया। इससे उस इलाके का काम पूरी तरह ठप हो गया। अगले ही साल इन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और 2 साल की सजा हुई। लेकिन इस सजा से भी कोई फर्क नहीं पड़ा। बिरसा के शिष्यों ने अकाल के वक्त भी लोगों की भरपूर सहायता की। इस काम ने उन्हें जीते ही महापुरुष का दर्जा दे दिया। उस दौर में लोग उन्हें 'धरती बाबा' कहकर पुकारने लगे।
अपने सामाजिक कार्यो और उनसे जुड़ी चमत्कारी कहानियों की वजह से बिरसा एक पैगंबर बन चुके थे। लोगों को यह विश्वास था कि उनके छूने से कहीं लगी चोट ठीक हो जाती है। बिरसा ने बलि प्रथा का विरोध किया और एक नए धर्म का सृजन किया जिसे 'बिरसाइत धर्म' कहा जाता है। झारखंड में बिरसा न सिर्फ सामाजिक व राजनीतिक चेतना के प्रतीक हैं बल्कि वह धार्मिक चेतना के भी अग्रणी माने जाते हैं। बिरसा मुंडा को बड़ा खतरा मानते हुए अंग्रेजों ने उन्हें जेल में डाल दिया और स्लो पॉइजन दिया। इस वजह से वह 9 जून 1900 को शहीद हो गए, लेकिन उनकी सोच और उनके काम हमेशा ही रहेंगे। झारखंड और बिहार में लोग उन्हें भगवान की तरह पूजते हैं और आज उन्होंने भगवान बिरसा मुंडा के नाम से जानते हैं लेकिन आजादी के इतिहास में काफी कम लोगों को इनके जीवन के बारे में पता होगा बलिदानी पुरुष के बारे में काफी कम लोग जानते हैं इतिहास में कुछ गिने-चुने लोगों के नाम ही अंकित किए गए और उनका ही बखान किया गया 12 नवंबर के दिन विद्यार्थी परिषद पूरे देश में जनजातीय गौरव दिवस के रूप में इस दिन को मनाती है व जन-जन तक इनके बलिदानों की गाथा समाज तक पहुंच जाती है ऐसी महान शख्सियत को हम नमन करते हैं
अभिलाष शर्मा
Hpurc राजनीतिक शास्त्र विभाग
8894094016
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