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शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

आज मंडी के सेरी चांननी में आम जनता विरोधी केंद्रीय बजट के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया

 भारत की जनवादी नौजवान सभा, एसएफआई व अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति ने आज मंडी के सेरी चांननी में आम जनता विरोधी केंद्रीय बजट के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया।



केंद्रीय बजट 2022-2023: मोदी सरकार ने देश की आम जनता के पक्ष में कोई महत्वपूर्ण कदम नहीं उठाए हैं, उल्टा देश में बेरोजगारी दर को इससे और बढ़ावा मिलेगा, महंगाई और तेजी से बढ़ेगी और मध्यम वर्ग को भी कोई राहत देने का कार्य इस बजट में नहीं दिया गया है। इस साल के आर्थिक सर्वेक्षण की तरह यह बजट भाषण भी लोगों को धोखा दे रहा है और उनकी वास्तविक चिंताओं को अनदेखा कर रहा है।

इस बजट में सामाजिक वास्तविकता को एकदम से अनदेखा कर दिया गया है यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि सरकारी व्यय जो 2021-22 के संशोधित अनुमानों में सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 16 प्रतिशत था उससे घटकर 2022-2023 में 15.2 प्रतिशत कर दिया गया है। जेडर बजट भी 2021-22 के लिए संशोधित अनुमानों के सकल घरेलू उत्पाद के 0.71 प्रतिशत से घटाकर 2022-2023 के बजटीय अनुमानों में सकल घरेलू उत्पाद का 0.66 प्रतिशत कर दिया गया है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय के लिए आबंटन 2022-23 में कुल अनुमानित व्यय के 0.10 प्रतिशत से कम है। महिलाओं के खिलाफ हिंसा की बढ़ती घटनाओं के चलते यह ज़रूरी था कि मिशन शक्ति, समर्थ और वात्सल्य को बढ़े हुए आवंटन प्राप्त हों। लेकिन, इन सबका संयुक्त बजट कुल व्यय के 1 प्रतिशत से भी कम है।

इन योजनाओं या स्कीमों के लाभार्थियों की एक बड़ी संख्या महिलाओं की है जिनमें मनरेगा, राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अल्पसंख्यकों और अन्य कमजोर वर्गों के कल्याण के लिए जारी योजनाएं शामिल हैं। इन योजनाओं पर संयुक्त व्यय 2021-22 के कुल संशोधित व्यय के 3.2 प्रतिशत से घटकर 2022-2023 में बजट आवंटन में 2.5 प्रतिशत हो गया है। इससे पता चलता है कि ‘‘अमृत काल’’ में सरकार के दृष्टिकोण में महिलाओं के लिए कोई जगह नहीं है।

सरकार के प्रस्तावों में बेरोजगारी की समस्याओं को हल करने के लिए किसी भी प्रकार का कोई सकारात्मक कदम नहीं उठाया गया है। देश में लगभग 20 करोड के आसपास युवा बेरोजगार हो चुके हैं और सरकार ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में कहा था कि वह हर वर्ष 2 करोड युवाओं को रोजगार देगी। मगर इस बजट में सरकार ने केवल मात्र 60 लाख लोगों को ही रोजगार देने की बात की है। यह बजट युवाओं के रोजगार पाने की उम्मीदों साथ खिलवाड़ कर रहा है। मनरेगा के बजट आवंटन में भी गिरावट आई है 2022 -2023 के बजट में पिछले वर्ष की तुलना 25% की कटौती की गई है। देशभर में पिछले 4 महीनों से मनरेगा के किए गए कार्यों का भुगतान भी सरकार नहीं कर पाई है। इस बजट में शहरी रोजगार गारंटी योजना की सभी मांगों को नजरअंदाज कर दिया गया है। यद्यपि मंत्री महोदय ने समावेशी विकास पर जोर दिया, लेकिन महिलाओं की सामाजिक सुरक्षा के लिए वास्तविकता में कोई ठोस आबंटन नहीं किया गया है। कामकाजी महिलाओं के लिए कोई महत्वपूर्ण कर रियायतें भी नहीं हैं।

ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत की स्थिति पिछले साल काफी खराब हो गई है यह जानने के बावजूद खाद्य सब्सिडी में 16 प्रतिशत की कमी की गयी है। एलपीजी सब्सिडी को पिछले साल चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर दिया गया था, जिससे कीमतों में एक वर्ष में 200 रुपये प्रति सिलेंडर से अधिक की अभूतपूर्व वृद्धि हुई थी।

महामारी में छात्राओं को भारी नुकसान उठाना पड़ा है, खासकर ऑनलाइन शिक्षा को बढ़ावा देने के कारण। इस बजट में लड़कियों की सुरक्षित शिक्षा के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार हेतु अधिक धन आवंटित करके स्कूलों और कॉलेजों को खोलकर उन्हे सक्षम बनाने के लिए लगभग कुछ भी नहीं है। बल्कि यह बजट बेशर्मी से लड़की या महिला विरोधी नई शिक्षा नीति को लागू करना चाहता है, और बड़े पैमाने पर ऑनलाइन और आभासी शिक्षा को बढ़ावा देता है। बजट में टेलीविजन, ई-विद्या और डिजिटल विश्वविद्यालय के माध्यम से शिक्षा की परिकल्पना की गई है। छात्राओं के लिए शैक्षिक कार्यक्रमों और खेलों के लिए आवश्यक वित्तपोषण के स्तर में ठहराव का तात्पर्य है कि शिक्षा के लिए किये गये बजटीय आवंटन को छात्रवृत्तियों और भौतिक बुनियादी ढांचे के विस्तार से हटाकर ऑनलाइन शिक्षा की ओर मोड दिया जाएगा, और छात्राओं की जरूरतों को अनदेखा किया है। इस अवसर पर नौजवान सभा राज्य अध्यक्ष सुरेश सरवाल, महिला समिति जिला प्रधान वीना वैद्य, सुनीता, रीना, वेद, पूर्ण चंद एसएफआई ज़िला अध्यक्ष अनिल, सचिव उपेंद्र, गोपेंद्र इत्यादि ने हिस्सा लिया।




 

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