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वामपंथी इतिहासकार भारतीय दर्शन को तोड़ मरोड़ कर दिखाने का प्रयास करते आ रहे हैं -अभिलाष

 


वामपंथी इतिहासकार भारतीय दर्शन को तोड़ मरोड़ कर दिखाने का प्रयास करते आ रहे हैं -अभिलाष



BHK NEWS HIMACHAL

 हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय क्षेत्रीय केंद्र धर्मशाला के  राजनीतिक शास्त्र विभाग के विद्यार्थी अभिलाष शर्मा का कहना है कि भारतीय संस्कृति सबसे प्राचीन संस्कृति है तथा भारत का दर्शन विश्व का सबसे प्राचीन दर्शन है यदि हम भारत के दार्शनिक विचार की बात करें तो भारत वसुधैव कुटुम्बकम् की बात करता है जिसमें व पूरे विश्व को एक परिवार मानता है तथा समस्त जगत के कल्याण की कामना करता है यदि हम वैदिक काल में जाएं तो भारतीय दर्शन विश्व का सर्वोच्च दर्शन रहा है लेकिन भारतीय दर्शन को वामपंथी इतिहासकारों ने तोड़ मरोड़ कर दिखाने का प्रयास किया है यदि हम भारत के प्राचीन भारत निर्माता मनु जी महाराज की बात करें तो उन्होंने समस्त समाज को एक नई दिशा देने का काम किया है जिसमें उन्होंने लोगों को वर्ण के आधार पर विभाजित कर  शासन व्यवस्था को कुशलतम तरीके से चलाने की विधि के बारे में बताया है मनु जी ने समाज को चार भागों में बांटा जिसमें 

पहला वर्ण ब्राह्मण था जिसका काम समूचे समाज को शिक्षा देना था 

दूसरा वर्ण  क्षत्रिय था क्षत्रियों का मुख्य काम शासन करना था तथा देश के नागरिकों की सुरक्षा करना था 

वहीं तीसरा वर्ण वैश्या का था  जिसका कार्य व्यापार करना था जो कि समूचे संसार में व्यापार करते थे 

चौथा वर्ण  शुद्र का जिनका काम सेवा कार्य करना था   और यह व्यवस्था शिक्षा वह कार्यकुशलता के आधार पर थे शिक्षा वह कार्य कुशलता के आधार पर वर्ण बदले जा सकते थे  इसका साक्षात उदाहरण महा ऋषि वाल्मीकि हैं जोकि दलित परिवार में जन्मे थे और उन्हें ब्राह्मण की श्रेणी उनके कर्मों के आधार पर दी जाती है  

हम देखें तो मनु जी से प्रेरित होकर कई पाश्चात्य राजनीतिक विचारकों ने उनके विचारों का अनुसरण किया है वही पाश्चात्य राजनीतिक विचारक  प्लेटो भी वर्ण व्यवस्था से इतने प्रभावित थे कि उन्होंने भारतीय व्यवस्था को देखते हुए बिल्कुल बखूबी  मिलता जुलता सिद्धांत वर्ण व्यवस्था पर दे डाला तथा उनका मानना था कि इससे राष्ट्र का विकास संभव है  यदि हम देखें की हमारी प्राचीन पुस्तकों में हमें यह  देखने को मिलता है कि हमारा भारत सोने की चिड़िया थी भारत में कई ऐसे साधन व संसाधन थे जिसके दम पर भारत दुनिया में विश्व गुरु कहलाता था लेकिन इसमें विशेष योगदान शैक्षणिक व्यवस्था व भारतीय वैचारिक चिंतन था जिसने समूचे विश्व कल्याण की बात कही है लेकिन अफसोस की बात यह है कि आज भी भारतीय संस्कृति भारतीय सभ्यता को वामपंथी इतिहासकारों द्वारा इसे अलग तरीके से दिखाने का प्रयास किया जा रहा है वहीं भारतीय समाज को खंडित करने का प्रयास वामपंथी लेखकों द्वारा किया जा रहा है वामपंथी विचारकों ने हमेशा भारतीय संस्कृति की आलोचना ही की है  भारत के कई विश्वविद्यालय ऐसे थे  जहां पर भगवान श्री राम के अस्तित्व पर सवाल उठाए जाते थे सनातनी धर्म ग्रंथ रामायण को तोड़ मरोड़ कर दिखाने का प्रयास किया जाता था वामपंथी विचारकों का यही उद्देश्य रहा है क्यों भारत के लोगों को किस प्रकार से खण्डन किया जाए  उनके द्वारा जातिवाद के नाम पर भारतीय समाज को खण्डन करने का प्रयास किया जा रहा है  लेकिन इन इतिहासकारों की  कथाकथित  रचना कि लोग अवहेलना कर रहे हैं तथा वास्तविकता तो यह है कि आज भारत की संस्कृति भारत की सभ्यता भारत के संस्कार व भारत के विचार को समूचा विश्व स्वीकार कर रहा है आज पश्चिमी देशों में भारतीय संस्कृति भारतीय सभ्यता व परंपराओं को अपनाया जा रहा है इसमें विशेष योगदान भारत के  राष्ट्रवादी संगठनों का भी है जो भारतीय समाज को एकजुट होकर फिर से भारत को विश्व गुरु बनाने के पथ पर अग्रसर है  




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