भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी का एक प्रतिनिधिमंडल हिमाचल प्रदेश के माननीय राज्यपाल से मिला व उन्हें प्रदेश में हुई भयंकर आपदा के संदर्भ में एक ज्ञापन सौंपा।
भारत की कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी की हिमाचल प्रदेश समिति का एक प्रतिनिधिमंडल हिमाचल प्रदेश के माननीय राज्यपाल से मिला व उन्हें प्रदेश में हुई भयंकर आपदा के संदर्भ में एक ज्ञापन सौंपा। प्रतिनिधिमंडल में राकेश सिंघा, डॉ कुलदीप तंवर, संजय चौहान, विजेंद्र मेहरा, जगत राम, फालमा चौहान व सुनील वशिष्ट शामिल रहे। प्रतिनिधिमंडल ने महामहिम राज्यपाल से अनुरोध किया कि वह इस मामले को भारत के माननीय प्रधान मंत्री के साथ उचित तरीके से उठाएं, क्योंकि यह आपदा आजादी के बाद की सबसे भीषण प्राकृतिक आपदा है।
सीपीआईएम राज्य सचिवमण्डल सदस्य राकेश सिंघा ने कहा है कि हिमाचल प्रदेश ने 337 बहुमूल्य जीवन खोए हैं व कई लापता हैं, जिनमें से कई मृत हैं जिनके केवल शव बरामद होना बाकी है। करीब 2 हज़ार घर पूरी तरह नष्ट हो गए हैं व 11 हज़ार आवासों को आंशिक क्षति हुई है। मवेशियों, भैंसों, भेड़ों आदि की भारी क्षति हुई है। पूरे राज्य में कृषि और बागवानी भूमि के साथ-साथ फसलें, राज्य की संपत्ति के अलावा जल विद्युत परियोजनाएं, बिजली की ट्रांसमिशन लाइनें, स्कूलों और स्वास्थ्य संस्थानों सहित सभी प्रकार के सरकारी भवन, पेयजल और सिंचाई योजनाएं, सड़कें, पुल आदि प्रभावित हुए हैं।राज्य सरकार का नुकसान का अनुमान दस हजार करोड़ रुपये है, जो सभी अनुमानों के अनुसार बहुत ही कम है। बड़ी संख्या में किसान घर और कृषि भूमि के बिना हो गए हैं क्योंकि उनकी जमीन बादल फटने, बाढ़ या भूमि का कटाव की वजह से या तो पूरी तरह से नष्ट हो गई है, बह गई है, खिसक गई है या नष्ट हो गई है और अब उस रूप में नहीं है जिस रूप में यह प्राकृतिक आपदा से पहले अस्तित्व में थीं। नौ लाख किसान परिवारों को कृषि भूमि और आजीविका के अन्य स्रोतों को पांच प्रतिशत से लेकर सौ प्रतिशत तक की क्षति हुई है, जिससे उनकी आजीविका के साधन पूरी तरह से समाप्त हो गए हैं। कई गाँव और बस्तियाँ पूरी तरह से नष्ट हो गई हैं। राज्य और केंद्र सरकार की सक्रिय भागीदारी के बिना किसानों के लिए खोई हुई संपत्ति को उसकी मूल स्थिति में वापस लाना मुश्किल है। यह निरंतर जारी रहने वाली प्राकृतिक आपदा, हिमालयी सुनामी राष्ट्रीय आपदा के सभी मापदंडों पर खरा उतरती है। इसे भारत सरकार द्वारा उसी आधार पर घोषित किया जा सकता है, जैसा कि वर्ष 2013 में उत्तराखंड राज्य और 2014 में आंध्र प्रदेश राज्य या किसी अन्य राज्य में हुआ था जहां इसी तरह की तबाही के लिए राष्ट्रीय आपदा घोषित की गई थी।
उन्होंने कहा कि इस आपदा के कारण बड़ी संख्या में लोगों ने अपनी आजीविका खो दी है अतः केंद्र और राज्य दोनों सरकारों को उनकी सहायता के लिए आगे आना चाहिए, अन्यथा इस प्राकृतिक आपदा के दर्द से बचने के लिए प्रदेश में आत्महत्याएं भी हो सकती हैं। वर्ष 2000 में तत्कालीन प्रदेश सरकार के कार्यकाल में हिमाचल प्रदेश विधानसभा ने धारा 163 (ए) पेश करके हिमाचल प्रदेश भूमि राजस्व अधिनियम 1954 में एक संशोधन लाया, जिसमें एक लाख 67 हज़ार किसानों को कब्जे वाली वन भूमि का मालिक माना। ऐसे सभी किसान, जिनकी अपनी राजस्व भूमि 5 बीघा से अधिक और कुल 10 बीघा से अधिक नहीं है व उन्होंने अपने घर बनाए हैं और किसी भी प्रकार के फलदार पेड़ उगाए हैं, उन्हें घर के विनाश के लिए राहत मैनुअल या सरकार द्वारा बनाई गई किसी भी अधिसूचना के तहत राहत के लिए कवर किया जाना चाहिए। माननीय हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने इसी तर्ज पर एक अंतरिम आदेश भी दिया है, बिना यह टिप्पणी किए कि ऐसा आदेश कानूनी या अवैध आदेश के दायरे में आता है या नहीं। ऐसी परिस्थितियों में, इसे वैध बनाने की अनुमति देने के लिए केंद्र सरकार को वन संरक्षण अधिनियम 1980 में संशोधन करने के लिए एक अध्यादेश जारी करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश के लोगों ने भारतीय सीमा पर सैंकड़ों शहादतों के साथ-साथ वन सरंक्षण अधिनियम 1980 के तहत राज्य के लिए एक प्रमुख राजस्व स्रोत अपनी वन संपदा को समर्पित करके राष्ट्र के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया है। ऐसी विपरीत परिस्थितियों में राज्य का राजस्व संकट और केंद्र सरकार से प्राप्त एकमात्र सहायता एनडीएफआर की अग्रिम राशि के रूप में केवल 200 करोड़ रुपये और एसडीआरएफ की 180 करोड़ रुपये की अग्रिम राशि है। ऐसी प्रतिकूल वित्तीय परिस्थितियों में या तो एनडीआरएफ के मानदंडों को हिमाचल प्रदेश के लिए एकमुशत राहत के रूप में बदला जाए व राज्य को हुए वास्तविक नुकसान की पूर्ण राशि प्रदान की जाए या राज्य को हुए वास्तविक नुकसान की राशि का राहत पैकेज दिया जाए, जो दस हजार करोड़ रुपये से अधिक है।
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