नशा तस्करी व SC/ST पर बढ़ रहे शैक्षणिक हमलों के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया।
आज SFI हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई द्वारा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के एकमात्र जनजातीय हॉस्टल में बढ़ रही नशा तस्करी व SC/ST पर बढ़ रहे शैक्षणिक हमलों के खिलाफ धरना प्रदर्शन किया।
धरना प्रदर्शन में बात रखते हुए इकाई सचिव सुजीत ने कहा की केंद्र सरकार व प्रदेश सरकार प्रतिवर्ष SC/ST के बजट में कटौती कर रही है जिस कारण SC/ST से शिक्षा की पहुंच को दूर किया जा रहा है। बजट कम दिए जाने के चलते SC/ST की स्कॉलरशिप पिछले 10 सालों से नहीं मिल रही है। SC/ST की स्कॉलरशिप ना मिलने के चलते पिछड़े समुदायों से आर्थिक प्रोत्साहन को छीना जा रहा है। एनसीडीएचआर रिपोर्ट के अनुसार, केंद्रीय बजट 2023-24 में अनुसूचित जाति के लिए रोजगार सृजन के लिए आवंटन पिछले वर्ष के 170.96 करोड़ रुपये से काफी कम होकर 22.97 करोड़ रुपये हो गया है। इसी तरह, एसटी के लिए पिछले साल के 89.5 करोड़ से घटकर इस साल 11.3 करोड़ रुपये हो गया है। ये योजनाएं सामान्य प्रकृति की हैं और विशेष रूप से एससी और एसटी के लिए नहीं हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि बाल बजट पर केंद्र सरकार का खर्च बेहद अपर्याप्त है, बाल अधिकारों की रक्षा करना और उन्हें बढ़ावा देने के लिए खर्च बढ़ाना महत्वपूर्ण है। AWSC [अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए आवंटन] और AWST [अनुसूचित जनजाति के कल्याण के लिए आवंटन] पर नीति आयोग के दिशानिर्देशों के अनुसार, जनसंख्या के अनुपात में आवंटन करना अनिवार्य है, हालांकि इस वर्ष भी आवंटन नहीं किया गया है। आनुपातिक रूप से और एससी और एसटी बजट के लिए 40,634 करोड़ रुपये और 9,399 करोड़ रुपये का अंतर मौजूद है। इसका असर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में भी पढ़ रहे SC/ST के छात्रों पर भी पड़ा है जिन्हें अभी तक छात्रवृत्ति नहीं मिली है और छात्रवृत्ति ना मिलने से देश व प्रदेश के शैक्षणिक संस्थानों में SC/ST के छात्रों का ड्रॉप आउट बढ़ा है। एससी एसटी एट्रोसिटी एक्ट को सरकारों द्वारा नए नए संशोधन कर कमजोर किया जा रहा है। विश्वविद्यालयों में उत्पीड़न को रोकने के लिए किसी भी प्रकार की कमेटियों का गठन नहीं किया जाता है । पिछली क्राइम ब्यूरो रिपोर्ट को अगर हम देखें तो अनेकों घटनाएं पूरे देश के विश्वविद्यालय व महाविद्यालयों के अंदर ऐसी घटित हुई है जहां इन दोनों समुदायों को प्रताड़ित करने की कोशिश की जाती है चाहे जाति के नाम पर हो या फिर जनजातियों के नाम पर, अनेकों छात्र ऐसे हैं जिन्होंने उस प्रताड़ना के चलते खुदखुशी तक कर ली लेकिन इसके बावजूद भी जिन विश्वविद्यालयों में अभी SC/ST के छात्र पढ़ रहे है उन्हें प्रशासन द्वारा अनदेखा किया जा रहा है। आज भी इन दोनों समुदाय की पहचान का सिर्फ राजनीतिकरण किया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के एकमात्र जनजाति हॉस्टल एसबीएस में हुई पिछले दो दिन पहले की घटना पर बात रखते हुए उन्होंने कहा की हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के हॉस्टल में जो घटना हुई है उस घटना का कारण सिर्फ हॉस्टल में हो रही नशा तस्करी है वहां कुछ एक छात्र ऐसे हैं जो सरे-आम नशे की तस्करी करते हैं दिन-रात खुद नशे में होते हैं और जनजातीय छात्रों को भड़काने का काम करते हैं उनके द्वारा ही पिछली घटना को अंजाम दिया गया। इस घटना का राजनीतिक फायदा लेने के लिए विश्वविद्यालय के अन्य छात्र संगठनों ABVP व NSUI द्वारा फिर जनजातियों की पहचान का राजनीतिकरण करते हुए जनजातीय छात्रों को भटकाने की कोशिश की गई और नशा तस्करों को बचाने के लिए धरना प्रदर्शन किया। गौरतलब है कि एसएफआई न केवल विश्वविद्यालय बल्कि देश व प्रदेश भर में हमेशा से ही एससी-एसटी के छात्रों को लामबंद करते हुए उनके अधिकारों की लड़ाई लड़ती आई है । SFI हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई द्वारा इससे पहले भी विश्वविद्यालय प्रशासन को जनजातीय हॉस्टल में बढ़ रही नशे की तस्करी को लेकर चेतावनी दे दी गई है लेकिन अभी तक विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा उन छात्रों जो इसमें संलिप्त है पर कोई कार्यवाही नहीं की गई है उल्टा प्रशासन उन्हें शय देने का काम कर रहा है। अतः SFI मांग कर रही है कि जल्द से जल्द उन छात्रों पर कार्यवाही की जाए और उन्हें हॉस्टल से निकाला जाए। साथ ही एस एफ आई देश व प्रदेश की सरकारों से यह मांग करती है कि SC/ST के बजट में हो रही कटौती को रोका जाए ताकि समावेशी शिक्षा को बचाया जा सके तथा कोई भी छात्र सामाजिक तथा पर्यावरणीय अक्षमताओं के कारण शिक्षा की पहुंच से दूर ना रहे।
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