एसएफआई विश्वविद्यालय इकाई ने कॉलेज कैडर में हो रही भर्तियों को लेकर पिंक पटेल चौक पर धरना प्रदर्शन किया
एसएफआई विश्वविद्यालय इकाई ने कॉलेज कैडर में हो रही भर्तियों को लेकर पिंक पटेल चौक पर धरना प्रदर्शन किया
BHK NEWS HIMACHAL
पुजा कौशल: (शिमला) एसएफआई विश्वविद्यालय इकाई ने कॉलेज कैडर में हो रही भर्तियों को लेकर पिंक पटेल चौक पर धरना प्रदर्शन किया। हाल ही में हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग (HPPSC) ने 548 असिस्टेंट प्रोफेसर (कॉलेज कैडर) के पदों के लिए विज्ञापन निकला हैl इन भर्तियों का उद्देश्य राज्य भर के विभिन्न सरकारी कलेजों में शिक्षकों की भर्ती की जानी है। हिमाचल प्रदेश के सभी सरकारी कॉलेजों में इस समय हज़ारों पद खाली चल रहें हैl 2017 से लेकर अभी इस नोटिफिकेशन तक सरकार ने सरकारी कॉलेजों में एक भी पद नहीं भरा पाई है l हालांकि इस विज्ञापन का एसएफआई विश्वविद्यालय इकाई एक ओर इसका स्वागत भी करती है, लेकिन दूसरी ओर इस भर्ती के लिए लोक सेवा आयोग जो चयन प्रक्रिया अपनाने जा रही है वह गैर-पारदर्शी है, जिसका इकाई खुले मंच से विरोध करती है, इससे एक बात तो साफ हो जाती है कि सरकार और पब्लिक सर्विस कमीशन सरासर पढ़े- लिखे बेरोजगार युवाओं से धोखा करना चाहते है। जिसे किसी भी हालात में स्वीकार नहीं किया जाएगा ।एसएफआई इकाई ने आरोप लगाते हुए कहा की इस प्रक्रिया में अंतिम चयन पूरी तरह से एक उम्मीदवार के साक्षात्कार पर निर्भर करेगा। विषय योग्यता परीक्षा / लिखित परीक्षा के अंकों का कोई महत्व नहीं दिया जाता है। जब इंटरव्यू की प्राथमिकता 100% होगी तो यह पूरी तरह से इंटरव्यू पैनल पर निर्भर करेगा जिसे सब लोग जानते हैं कि यह एप्रोच सिस्टम से प्रभावित है। लोक सेवा आयोग द्वारा ही इस भर्ती प्रक्रिया में सुधार के लिए कई प्रयास किए गए, लेकिन हम नहीं जानते कि लोक सेवा आयोग को पारदर्शिता की दिशा में सुधार करने से किसने रोका। 20 मई 2020 को, आयोग द्वारा एक निर्णय लिया गया था, जहां अंतिम चयन में लिखित परीक्षा के अंक 65% कर दिए गये थे, और साक्षात्कार के अंको को 100% से घटाकर 35% कर दिया गया था। इसे प्रसिद्ध रूप से 65:35 सूत्र कहा जाता था, और उम्मीदवारों द्वारा इसका स्वागत किया गया था। लेकिन 2 सितंबर 2020 को इस व्यवस्था को वापस ले लिया गया और साक्षात्कार के आधार पर उम्मीदवारों के चयन की पुरानी प्रणाली को बहाल कर दिया गया। इस प्रकार उम्मीदवारों के विश्वास को झटका लगा है ।
एसएफआई ने कहा की पब्लिक सर्विस कमीशन एक संवैधानिक संस्था है इस तरह पढ़े लिखें युवाओं से विश्वास घात करना किसी भी तरह से तर्कसंगत नहीं है ।जब हम सहायक प्रोफेसर (कालेज संवर्ग) के मामले में भर्ती की प्रक्रिया की तुलना अन्य कलास एक (1) राजपत्रित पदों से करते हैं तो यह और अधिक संदेह पैदा करता है। हिमाचल प्रदेश प्रशासनिक सेवा (एचपीएएस / एचएएस) के मामले में, लिखित अंक अंतिम चयन का 87 प्रतिशत और अंतिम चयन में व्यक्तिगत साक्षात्कार का हिस्सा 13% है। अगला उदाहरण हिमाचल प्रदेश वन सेवा (एचपीएफएस/एसीएफ) है, जहां लिखित स्कोर अंतिम चयन का 83 फीसदी है और साक्षात्कार 17 फीसदी है, लेकिन कॉलेज कैडर में इस तरह की अपारदर्शिता क्यों की जाती है । एसएफआई इकाई ने आरोप लगाते हुए कहा है कि इससे एक माफिया तंत्र तैयार हुआ है जो समाज में "एप्रोअच प्रणाली" नामक एक नई संस्था के नाम से काम कर रहा है। एप्रोच एक ऐसा शब्द है जो केवल सरकारी कार्य में ही इस्तेमाल होना बाकि रह गया है, वरना आम लोगों के बीच ये शब्द इस कदर फैला है कि बिना एप्रोच के अच्छे से अच्छे शिक्षित अभ्यर्थी भी नौकरी की आशा नहीं कर सकते हैं । इस परीक्षा के लिए पढ़े- लिखें पीएचडी तक बेरोजगार छात्र दिन - रात एक करके अपनी लिखित परीक्षा की तैयारियों में डटा है, अंत में अगर उसके नंबर तक नहीं जुड़ते उस युवा के अंदर किस तरह की निराशा पैदा हो जाएगी।
इसलिए एसएफआई ने माना है कि इसका कमीशन और सरकर को खुले मन से विचार करना महत्वपूर्ण बन जाता है ।
एसएफआई विश्वविद्यालय इकाई ने कहा है कि जहां एक तरफ राज्य सरकार ने तृतीय श्रेणी के पदों से साक्षात्कार समाप्त कर दिए हैं, वहीं दूसरी ओर कॉलेज कैडर के चयन की पूरी प्रक्रिया साक्षात्कार पर ही निर्भर रहती है। जिसे किसी भी क़ीमत पर नहीं माना जा सकता है । यह मामला शिक्षा व्यवस्था के भगवाकरण में सरकार के निहित स्वार्थों से जुड़ा है। एसएफआई विश्वविद्यालय इकाई ने जोर देते हुए कहा की लोक सेवा आयोग में ऐसे बहुत से उदाहरण हैं, जिनमें परीक्षा के टॉपर्स का चयन साक्षात्कार में नहीं हुआ, जिसका ब्यौरा पब्लिक सर्विस कमीशन के पास भी है । समय आने पर यह भी जनता के सामने लाया जाएगा कई बार कमीशन ने योग्यता को अस्वीकार करने के कई उदाहरण पेश किए जहां योग्यता को किनारे कर दिया गया था और न्यूनतम योग्यता वाले उम्मीदवार का चयन किया गया था। भर्ती प्रक्रिया में इस तरह की खामियां न केवल उम्मीदवारों और उनके परिवारों को निराश कर रही हैं, बल्कि ये शिक्षा के स्तर को भी गिरा रही हैं और राज्य के आम नागरिक की नजर में एचपीपीएससी की छवि खराब कर रही हैं। एक ओर जहाँ प्रदेश में बेरोजगारी चरम सीमा पर है यही दूसरी ओर 5 साल कई लंबे अंतराल के बाद भी विज्ञापित सीटों के लिए भी कमीशन एक पारदर्शिता की प्रक्रिया न अपनाकर युवाओं के साथ धोखा करना चाहती है । लिखित परीक्षा और इंटरव्यू के नम्बर अलग - अलग तरीके से जुड़े, अन्यथा एसएफआई छात्र समुदाय , बेरोजगार युवाओं,को लामबंद करते हुए प्रदेश भर में प्रदर्शन करेगी जिसकी जिम्मेदारी कमीशन और सरकार की होगी।
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