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शुक्रवार, 1 नवंबर 2024

*कुल्लू बाह्य सिराज के लोग दीपावली के दूसरे दिन बलिराज पूजा करके मनाते धूमधाम से पर्व*

 *कुल्लू बाह्य सिराज के लोग दीपावली के दूसरे दिन बलिराज पूजा करके मनाते धूमधाम से पर्व*





            *उमाशंकर दीक्षित*

*दलाश (कुल्लू )*। कार्तिक दीपावली अमावस्या की समाप्ति के पश्चात दूसरे दिन सुबह बलिराज पूजा की जाती है। अग्नि को प्रज्वलित करके साथ में बलिराज पूजा करके दीपावली का त्यौहार भी विसर्जित किया जाता है। यह परम्परा हिमाचल के ऊपरी क्षेत्र में प्राचीन समय से चली आ रही है। 



     कुल्लू बाह्य सिराज व सतलुज घाटी के तमाम क्षेत्र में शनिवार को बलिराज पूजा की गयी। यहां के लोगों ने बलिराज पूजा के साथ गोवर्धन पूजा, अन्नकूट पूजा बड़े हर्षोल्लास तथा परम्परागत ढंग से की गयी। 



      धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर गोवर्धन की पूजा करने से आर्थिक समस्याएं दूर होती हैं। इससे घर में धन-धान्य, संतान सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। इस दिन जो भी भक्त भगवान गिरिराज की पूजा करता है तो उसके घर में सदैव लक्ष्मी का वास होता है, अन्नधन की वृद्धि होती है। गिरिराज महाराज जो भगवान श्री कृष्ण का ही स्वरूप हैं उनका आशीर्वाद पूरे परिवार पर बना रहता है। 



     गोवर्धन पूजा पर गाय, भगवान कृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा का विशेष महत्व होता है। गोवर्धन पूजा करने के लिए सबसे पहले घर के आंगन में गाय के गोबर से गोवर्धन की आकृति भी बनाई जाती है। इसके बाद , चावल, खील , बताशे, जल, दूध, टीका , , फूल और दीपक जलाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करने का शास्त्रीय महत्व है। कुछ लोग अपने परिवार सहित श्रीकृष्ण स्वरुप गोवर्धन की सात वार प्रदक्षिणा करने की प्राचीन परम्परा निभाते हैं । मान्यता है कि इस दिन विधि विधान से सच्चे दिल से गोवर्धन भगवान की पूजा करने से एवं गायों को गुड़ व चावल खिलाने से भगवान श्री कृष्ण की कृपा बनी रहती है। 



     गोवर्धन पूजा पर अन्नकूट की भी पूजा की जाती है। इस दिन भगवान श्रीकृष्ण को कई तरह के अन्न, फल और सब्जियों से बने पकवान का भोग लगाया जाता है। अन्नकूट का भोग बनाने के लिए कई तरह की सब्जियां, दूध और मावे से बने मिष्ठान और चावल का भी प्रयोग किया जाता है। अन्नकूट में ऋतु अन्न व सब्जियों का प्रसाद बनाया जाता है। अब गाँव की महिलाएं इसकी मात्र रिवाज़ निभाती हैं।  



     गोवर्धन पूजा में भगवान कृष्ण, गाय, गोवर्धन पर्वत और इंद्रदेव की पूजा इसलिए करते हैं क्योंकि अभिमान चूर होने के बाद इन्द्र ने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी थी और आशीर्वाद स्वरूप गोवर्धन पूजा में इन्द्र की पूजा को भी मान्यता दे दी। प्राचीन मान्यताओं के अनुसार द्वापर युग में इंद्र ने कुपित होकर जब मूसलाधार बारिश की तो श्री कृष्ण ने गोकुलवासियों व गायों की रक्षार्थ और इंद्र का घमंड तोड़ने के लिए गोवर्धन पर्वत,छोटी अंगुली पर उठा लिया था। इस तरह से ब्रजवासियों पर जल की एक बूंद भी नहीं पड़ी, सभी गोप-गोपिकाएं उसकी छाया में सुरक्षित रहे। तब श्रीकृष्ण को अवतार की बात जानकर इन्द्रदेव अपने इस कार्य पर बहुत लज्जित हुए और भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा-याचना की।



       इस पर्व को मनाने में बाह्य सिराज आनी के 6/20 क्षेत्र के रिवाड़ी, गोहान, चपोहल, रों, कराणा, खणी बटाला, ठोगी, शमेशा, थबोली, ओलवा, निथर, निरमंड के अनेक गाँव शामिल हैं।



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