*मार्क्स और लेनिन के विचारों में ही खूनी हिंसा शामिल तो एस.एफ.आई से क्या उम्मीद करें : नितिन पटियाल।*
*एस.एफ.आई जिनको मानती है अपना आदर्श उनके विचारों में खूनी क्रांति शामिल : अभाविप।*
एच.पी.यू में एकतरफा कार्यवाही कर रहा पुलिस प्रशासन एस.एफ.आई के गुंडे खुले घूम रहे : नितिनपटियाल।
पवन भारद्वाज चंबा
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद हिमाचल प्रदेश के प्रदेश कार्यकारिणी सदस्य नितिन पटियाल का कहना है कि "हैरानी का विषय तो यह है कि हिंसा की शुरुआत करने वाली एस.एफ.आई ने हिंसा करने के तुरंत बाद मीडिया का सहारा लेकर जनता के बीच संवेदनाएं जुटाने का प्रयास किया। इस से यह स्पष्ट होता है कि एस.एफ.आई ने हमले की पूर्व योजना बनाई हुई थी। एस.एफ.आई और अभाविप के आपस में विचारधारा को लेकर सदैव से मतभेद रहे हैं। *एक और अभाविप स्वामी विवेकानंद जी के विचारों की बात करती है तो दूसरी ओर एस.एफ.आई मार्क्स, लेनिन, स्टालिन और माओवादी विचारकों को अपना आर्दश मानती आई है।* जिस मार्क्स को एस.एफ.आई अपना आदर्श मानती है उसने अपने विचारों में स्पष्ट रूप में लिखा है कि *क्रांति खून के बिना नहीं लाई जा सकती।* ऐसे में हिंसक विचारधारा किस छात्र संगठन की है यह हिमाचल प्रदेश की जनता भलि भांति जानती है। दूसरी और विद्यार्थी परिषद स्वामी विवेकानंद को अपना आर्दश मानते हुए राष्ट्र हित में वर्ष 1949 से ही कार्यरत है। विश्वविद्यालय के अंदर जब भी तनावपूर्ण स्थिति पैदा हुई है इसका कारण एस.एफ.आई ही रही है। आज जहां एक तरफ कुछ गिने चुने राज्यों को छोड़कर देश ने मार्क्स के विचारों को नकार दिया है वहीं एस.एफ.आई कुछ परिसरों में अपनी अंतिम सांसे गिनते हुए हिंसा का सहारा लेकर जीवंत है। इसका जीता जागता उदाहरण हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय है जहां एस.एफ.आई अपने हिंसक रुख को बरक़रार रखे हुए है और विद्यार्थी परिषद की छवि को प्रदेश में धूमिल करने का कार्य करती है। एस.एफ.आई जैसे छात्र संगठन का कोई उद्देश्य नहीं है, इनका केवलमात्र उद्देश्य राष्ट्र के पुनः निर्माण में कार्यरत छात्र संगठनों को हिंसा के जरिए परेशान करना है। *हिमाचल प्रदेश में जहां जहां एस.एफ.आई है हिंसा केवल उन्हीं परिसरों में देखी जा सकती है।"
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