पतलीकूहल ट्राउट मत्स्य फार्म में शुरू हुआ आरएएस तकनीक से मत्स्य पालन । हर वर्ष लगभग चार से पांच टन होगा ट्राउट मछली का उत्पादन । देश में पहली बार आरएएस तकनीक से ट्राउट मछली पर पतलीकूहल ट्राउट मछली फार्म में चल रहा है ट्रायल
पतलीकूहल ट्राउट मत्स्य फार्म में शुरू हुआ आरएएस तकनीक से मत्स्य पालन ।
हर वर्ष लगभग चार से पांच टन होगा ट्राउट मछली का उत्पादन ।
देश में पहली बार आरएएस तकनीक से ट्राउट मछली पर पतलीकूहल ट्राउट मछली फार्म में चल रहा है ट्रायल ।
मनाली ( ओम बौद्ध )
मछली पालन को बढ़ावा देने के लिए नयी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है । ताकी कम क्षेत्र में अधिक उत्पादन हो सके और किसानों की आय बढ़ सके । ऐसी ही एक तकनीक है आरएएस (रिसर्कुलेटरी अक्वाकल्चर सिस्टम) । पतलीकूहल ट्राउट मत्स्य विभाग के निदेशक विवेक चंदेल ने जानकारी देते हुए बताया कि दी चंडीगढ़ इंजीनियरस कंपनी द्वारा आरएएस तकनीक का निर्माण पतलीकूहल में किया गया है देश में पहली बार आरएएस तकनीक से ट्राउट मछली पर ट्रायल पतलीकूहल स्थित ट्राउट मत्स्य फार्म में शुरू हो गया है । यह ट्रायल 1 जून 2024 से शुरू हो गया हैं और 31 मई 2025 तक चलेगा, इस तकनीक से हर वर्ष लगभग चार से पांच टन ट्राउट मछली का उत्पादन होगा । यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें पानी के पुर्नसंचार और पुर्नउपयोग पर निर्भर करती है । इस प्रणाली में आयताकार या वृताकार टैंक में कम जगह में अधिक मछली का उत्पादन किया जाता है, इसकी खासियत यह होती है कि इसमे मछली पालन में दूषित हुए पानी को बॉयो फिल्टर टैंक में डाला जाता है फिर इसे फिल्टर करके वापस मछली वाले टैंक में भेज दिया जाता है । भारत में परंपरागत मछली पालन तकनीक से किसान प्रति हेक्टेयर दो से पांच मीट्रिक टन मछली का उत्पादन करते हैं, वहीं इस प्रणाली में 1/8 हेक्टेयर क्षेत्र अथवा 1/6 हेक्टेयर क्षेत्र से लगभग 60 मीट्रिक टन मछली का उत्पादन प्रतिवर्ष प्राप्त किया जाता है ।
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